Wednesday, 20 June 2018

 जपः                                                 कविता
                                                        -डा गदाधर त्रिपाठी
अव्यक्तस्यावतारा अभवन् समये समये सदा सदा।
मनुष्याणां कल्याणायाधारो नाम्नस्तदा तदा ।।
ध्वनिरीशः स आद्यः हि ऊॅ शब्देन व्याकृतश्च वै।
 रोगान्मुक्ति:  शान्तिश्चाशु प्राप्नोति नरजीवने।।
शयनात् पूर्वं रात्रौ वा प्रातरुत्थाय वा पुनः।
अंगुष्ठमध्यमयोर्मध्ये मालां गृह्णातु सर्वदा।।
आवश्यकी मालाशुद्धिः शरीरशुद्धिस्तथैव च वै।
गुरुं गणपतिं वन्दित्वा सर्वदा जपं कुर्यात् सर्वथा।।
श्रद्धा यस्मिन् देवे हि सा माला ग्राह्या सदा।
संकल्पसहिता निष्ठा पद्मासनञ्चासनम्।।
महिमा भगवतोर्नाम्नः सर्वत्रैव च गीयते।
मुक्तिः पापान्निश्चितास्ति जपतो नास्ति पातकम्।।

                               
 अक्षयतृतीया                                       

अक्षयो विधिसृष्टौ नास्ति खलु सर्वं कालभोजनम्।
अक्षयः काल एवास्ति स आगतस्तृतीया दिवसे यथा।।
आरम्भः सत्ययुगस्याद्य त्रेतायास्तथैव च वै।
ब्रह्मणः पुत्रो$क्षयकुमारश्चाद्यैव जातस्तथा।।
वस्त्रावतरणमद्यैव लज्जा चैव च रक्षिता।
सुदामाकृष्णयोर्मेलनमद्यैवाभवदाश्रमे।।
कपाटयोरुद्घाटनं बद्रीनाथस्याद्यैव भवति सर्वदा।
क्षेत्रे वृन्दावने$द्य पददर्शनं राधाकान्तस्य तथा हि वै।
यः कोष अपहृत आसीत् कुवेरेणाद्य प्राप्तश्च वै।
कौरवपाण्डवयोर्युद्धमद्यैव सम्पन्नतां जगाम हि खलु।।
अवतरितान्नपूर्णा वै धरायामस्मिन्दिने।
ऋषिणा परशुधरेणैव मण्डिता धरिणी तथा।।
तिथिरियं पावनी कथिता कार्याणि सिध्यन्ति सर्वदा।
तेनैव शुभकार्याणि सम्पादितानि भवन्ति च वै।।

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